सोमवार, 13 अक्तूबर 2008

हिन्दी के साथ जितना द्रोह इन फिल्म वालो ने किया किसी और ने नही किया होगा। साधारणतया हम कभी ख़त नही बोलते पत्र या चिठ्ठी बोलते है, ख्वाब नही बोलते स्वप्न या सीधे-सीधे सपना बोलते है क्योकि ये हमारे संस्कार नही है इस तरह से

कोई टिप्पणी नहीं: